PETA इंडिया ने 15 से 19 जनवरी 2020 तक तमिलनाडु राज्य में आयोजित सात जल्लीकट्टू आयोजनों की जांच की व जानवरों के साथ होने वाली अत्यधिक क्रूरता का खुलासा कर रहा है। जल्लीकट्टू के दौरान प्रतिभागी बैलों को शारीरिक एवं मानसिक यातनाएँ देते हैं व इंसान एवं बैलों की जान को खतरे में डालते हैं।
बैलों को गंभीर मानसिक एवं शारीरक आघात पहुंचाकर उन्हें जल्लीकट्टू में दौड़ने के लिए मजबूर किया जाता है, उनका शरीर इस तरह से दौड़ने के अनुरूप नहीं होता इसलिए यह अत्यधिक पीड़ा का कारण बनता है।जांचकर्ता द्वारा अरियालुर, डिंडीगुल, मदुराई और तिरुचिरापल्ली जिलों में जल्लीकट्टू आयोजनों के दौरान ली गयी तस्वीरें एवं वीडियो में साफ़ रूप से देखा जा सकता है कि बैलों को रस्सियों से मारा गया, रॉड से पीटा गया, कील लगी लकड़ी की छड़ चुभोई गयी, बैलों को घेरने के लिए लोगों ने बैलों को लाते व ठोकरे मारी व उनके ऊपर कूद गए। उनकी पूँछ को बुरी तरह काटा एवं मरोड़ा गया, कई घंटो तक बिना भोजन, पानी, छाया एवं आराम के थकेहारे एवं प्यासे खड़े बैलों कोजल्लीकट्टू में भाग लेने के लिए मजबूर किया गया था।
कानून भी इन बैलों की रक्षा करने में विफल साबित हुआ है
मनोरंजन के लिए बैल को आतंकित करना बर्बरता है। उत्तेजक भीड़ एवं आयोजन समिति के लोग एवं बैल मालिक अखाड़े के अंदर बैलों को बुरी तरह से उनके आगे के पैर पकड़कर खींच रहे थे व यहाँ तक कि बैलों को नाक में बंधी रस्सी से जोर से खींच रहे थे जिसकी वजह से उनकी नाक में से खून बह रहा था। बहुत से बैल थकावट एवं प्यास के कारण जल्लीकट्टू में दौड़ने से पहले व बाद में बेहोश हो गए जिसके कारण उन्हें गंभीर छोटे आई व कुछ की मौत हो गयी।
जल्लीकट्टू में इस साल भी जानवरों एवं इन्सानों की चोटों और मौतों का सिलसिला जारी रखा। हालांकि कोरोना के चलते जल्लीकट्टू आयोजनों पर रोक लगी किन्तु क्रूरता और दुर्व्यवहार नहीं थमा। जल्लीकट्टू के कारण होने वाली चोटों और मौतों को हमेशा मीडिया द्वारा रिपोर्ट नहीं किया जाता, केवल इस साल जनवरी और फरवरी के दौरान आयोजित जल्लीकट्टू कार्यक्रमों में कम से कम 13 इन्सानों और 6 बैलों की कथित तौर पर मौत हो गई जबकि 570 इंसान घायल हो चुके हैं।
नयी जांच ने एक बार फिर साबित कर दिया की जल्लीकट्टू पर रोक लगनी जरूरी है।
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तामिलनाडु के बैलों को सुरक्षा की जरूरत है
जल्लीकट्टू हेतु बनाए गए कानून मज़ाक बनकर रह गए हैं। राज्य के नीति निर्मांणकर्ताओं ने जल्लीकट्टू पर से प्रतिबंध हटाकर व कानून तामिलनाडु पशु क्रूरता निवारण (जल्लीकट्टू आयोजन) नियम 2017 में दुर्व्यवहार करने वालों पर जुर्माने एवं सजा का प्रावधान न करके आयोजकों, उत्तेजक दर्शकों एवं प्रतिभागियों के लिए इन्सानों एवं बैलों की जन से खिलवाड़ करने के सारे रास्ते खोल दिये हैं।
PETA इंडिया के जांचकर्ता ने देखा कि बैलों को रखे जाने वाले स्थान पर भी बहुत से आक्रामक दर्शक बैलों के साथ दुर्व्यवहार कर रहे थे, बैलों को सींगो से पकड़ कर खींचते हुए उस जगह पर भी जल्लीकट्टू के समान एक और जल्लीकट्टू शुरू कर नियमों का उलंघन किया गया। बहुत से बैलों को पशु चिकित्सकों की जांच किए बिना ही जबरन जल्लीकट्टू में भाग लेने के लिए मजबूर किया गया था। जांच केंद्र के अंदर फिल्माया गया की चिकित्सा अधिकारी बैलों की आवश्यक शारीरिक जांच किए बिना ही उन्हें दौर्ड के लिए फिट घोषित कर रहे थे।
जल्लीकट्टू हमारे समाज पर एक दाग है। भारतीय जीव जन्तु कल्याण बोर्ड की कई वर्षों की जाँचे तथा PETA इंडिया की अनेकों जाँचों ने यह साबित कर दिया है कि जल्लीकट्टू मौलिक रूप से क्रूर है व पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के सेक्शन 3 एवं 11 का खुलेआम उलंघन करता है इसीलिए इस क्रूर खेल पर वर्ष 2014 में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंध लगा दिया था।
PETA इंडिया की नवीनतम जांच खुलासा करती है कि “पशु क्रूरता निवारण (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम 2017”; “तामिलनाडु पशु क्रूरता निवारण (जल्लीकट्टू का संचालन) नियम 2017”; और “भारतीय जीवजंतु कल्याण बोर्ड (AWBI)” द्वारा 2018 के दिशा-निर्देशों का पूरी तरह से उल्लंघन यह साबित करता है कि क़ानून बैलों की रक्षा नहीं कर सकता– केवल राष्टव्यापी प्रतिबंध ही उन्हें बचा सकता है।
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जानबूझकर तड़फाये गए बैल – डरे सहमे जानवर हैं – अमानवीय है। जल्लीकट्टू के दौरान प्रतिभागियों ने इन बैलों को लाठी डंडों से मारा, दरांती और छुरा चुभोया, थप्पड़ घूंसे मारे, उनकी पुंछ को मुंह से काटा और उनके ऊपर कूद गए। कई बैल टूटी हड्डियों और गंभीर चोटों के साथ संघर्ष करते हैं व थकावट एवं निर्जलीकरण के चलते बेसुध होकर गिर जाते हैं और यहां तक कि मर भी जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि जल्लीकट्टू या अन्य दौड़ों के दौरान बैलों का इस्तेमाल करना उनको डराना, उकसाना, चोटिल करना, यातनाएं देना और अपनी जान बचाने के लिए भागना – स्वाभाविक रूप से क्रूर है, और इसलिए देश की इस सर्वोच्च अदालत ने वर्ष 2014 में फैंसला सुनाते हुए किसी भी तरह के प्रदर्शन में बैलों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी थी। लेकिन इस प्रतिबंध, जन आक्रोश व पशु सुरक्षा कानून के बावजूद इन बैलों पर यातनाएं और दुर्व्यवहार आज भी जारी है।
अगर आपको विश्वास नहीं तो नीचे दिये गए चित्रों पर नजर डालें :
चोटें और मौतें
बैल और इंसान की मृत्यु और घायल होने लगातार बढ़ता आंकड़ा चौंका देने वाला है जो यह इस बात की पुष्टि करता है कि कोई भी कानून बैलों, इंसानों और दर्शकों के साथ होने वाली क्रूरता और हताहत को रोक नहीं सकता। 2017 में जब से तमिलनाडु सरकार ने जल्लीकट्टू आयोजनो को पुनः स्वीकृति प्रदान की है तब से अब तक राज्य भर में अनेकों जगहों पर आयोजित जल्लीकट्टू कार्यक्रमों के दौरान कम से कम 22 बैल और 57 मनुष्यों की मौत हो चुकी है और 32 बैल तथा 3,632 इंसान बुरी तरह जख्मी हो चुके हैं।अब वक्त आ गया है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय तामिलनाडु में पूर्व में प्रतिबंधित किए गए जल्लीकट्टू आयोजनों पर हमेशा के लिए प्रतिबंध लगा दें।
वास्तविक संख्या अधिक होने की संभावना है। समाचार रिपोर्टों में घटनाओं के दौरान होने वाली चोटों से होने वाली अंतिम मानव मृत्यु को कवर नहीं किया जा सकता है, और वे निश्चित रूप से हमेशा यह नहीं जानते हैं कि बैल क्या सहन करते हैं।
जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगना चाहिए
तमिलनाडू राज्य कानून, बैलों के प्रति जानबूझकर हो रही क्रूरता को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। जल्लीकट्टू के दौरान जिन बैलों के साथ धक्कामुक्की, मारपीट, क्रूरता, दुर्व्यवहार किया जाता है वो शारीरिक एवं मानसिक दोनों ही तरह से प्रताड़ित होते हैं। जल्लीकट्टू पर लगे प्रतिबंध को पुनः बहाल किया जाना चाहिए ताकि बैलों को इस क्रूरता एवं अत्याचार से मुक्ति तथा इन्सानों को दुर्घटनाओं एवं मौतों से बचाया जा सके।